जब
आपको बहुत दिनों से लग रहा हो
कि तबियत आजकल ख़राब रहती है
शायद अब मौत आने ही वाली है
और दो तीन दिन
लगातार ऐसा लगे ---
और फ़िर एक दिन पक्का सा लगे
कि आज आखिरी दिन ही है
तो इस आखिरी दिन
आप अपनी जिन्दगी के आखिरी दिन क्या करेंगे?
जनाब
ज्यादा सोचने की जरूरत नही है
क्योंकि आपने जिन्दगी के बारे में
इतने बरसों तक बहुत ज्यादा नही सोचा
और सोचा भी, तो कुछ नही किया
इन आखिरी दिनों में भी
आपने बस कयास ही लगाए
जिन्दगी को कुछ ख़ास नही दिया
कुछ ख़ास नही किया
जनाब
यदि मौत में और आपमें
अभी भी फासला है
तो क्या आपको
आदतों से आजाद नही होना है
आपको मौत के दिन तक भी
क्या अंदाजे ही लगाने हैं?
आदत अच्छी हो या बुरी
आदत है
अच्छे खासे आदमी को
मशीन बना देती है
और क्या आप मशीन बन कर मरना पसंद करेंगे?
अगर ये आखिरी पल हों
Posted by
Rajeysha
on Wednesday 26 November 2008
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मशीन
7 comments:
वाह!! बहुत बढिया।आप की यह रचना कुछ सोचनें के लिए मजबूर करती है।
आदत अच्छी हो या बुरी
आदत है
अच्छे खासे आदमी को
मशीन बना देती है
और क्या आप मशीन बन कर मरना पसंद करेंगे?
अच्छी कविता है।
साहित्य हमे जीवन के प्रति संवेदनशील बनाता है , मुझे वाकई ऐसा लगा की आपकी रचनाए उस श्रेणी मे
आती हैं , ब्लॉग की साज़-सज्जा पर थोड़ी और मेहनत करें |
धन्यवाद
कविताएँ पढ़ीं। अच्छी और दिशाबोध कराती सोच है।
कविता के अलावा ब्लाग पर गद्य भी अवश्य लिखें। वर्ड वेरीफिकेशन हटाएँ और चिट्ठाजगत और ब्लागवाणी पर पंजीकरण कराएँ।
wah kafi achchhi soch de rahi hai aapki ye kavita.....
बढ़िया लिखा है. आपका स्वागत है. द्विवेदी की बातों पर ध्यान दें. अब आप के कविता के बारे में - हमें तो मशीन बनकर मारना अच्छा लगेगा क्योंकि वह संवेदना हीन होगा.
http://mallar.wordpress.com
वाह!! बहुत अच्छी कविता है।
धन्यवाद
Pravallika
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