घबराहट

क्यों वक्त में इतना रचा हूं
कि खुद से पूछता हूं
कितना खर्च कितना बचा हूं

बीती यादें बन गई है
आती वादे बन गई है
जिन्दगी क्या हो गई है
कितना गर्क कितना उठा हूं

क्या होश की दवा है इतनी मुश्किल
कि उम्रों तक नींद सपने ही मुमकिन
कुछ नहीं होता महसूस देह बिन
पहले ही कदम मैं इतना थका हूं

मौत की दस्तक है हर पल
डराता है आता जाता कल
धड़कन कहती उबल उबल
बस अब टपका, इतना पका हूं

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