घर ही नहीं
रोज़ झाडू पोंछा लगाना चाहिए
अक्ल के तहखानों में

जरा मुश्किल है
क्यों कि हर दिन
हम बे खबर होते हैं
रात आती है aन्धेरा होता है
और
रोज़ बन जाते है
नए तहखाने

रोज़ ८ - १० घंटे घर के बाहर भी बिताना जरूरी है
कि हमें खबर रहे
अब हम पत्थर के जन्म को
पार कर आये हैं
और चल फिर सकतें हैं
चाँद तक

हर घडी याद रहना चाहिए
कि हम जिन्दा है
आदमी हैं
और होश रखते है

और खुदा आकाश में ही नहीं
हमारी जड़ों में भी है