इसलिए नया साल मुबारक

यदि सच
कड़वा लगता हो
तो पढ़ना बंद कर दो
जिंदगी की किताब
...
बात उस समय की है
जब समय नहीं हुआ करता था
सब कुछ पैदा हो गया था
तुम पैदा हो गये थे
बस............ समय नहीं।
...
अब भी बहुत समय तक
पैदाइश के ....बहुत बाद तक
बहुत से लोगों का
समय पैदा नहीं होता
.......
और कुछ लोग
पैदा होते हैं ‘वक्त’ के साथ ही
जनाब!
वक्त और दुख दो चीजें नहीं होते।
..
जब खुशी हो
दिल मंे
तो सारा जहां खुश दिखता है
और पता नहीं चलता वक्त का
...
किन्हीं दुखी दिनों में
किसी शाम को
तुमने जाना था
कि ”वक्त“ जैसी कोई शै होती है
और भूले से ही
अनायास ही
तुमने
सुबह और शामें गिननी शुरू कर दीं।
काटने के लिए दुख को
...
अभी भी
जब तुम टाईम पास कर रहे होते हो
तो काटते हो दुख को
...
और अभी भी
सब कुछ
अपनी मर्जी से ही होता है,
तुम्हारे संकल्प और,
तुम्हारी मर्जी से नहीं।


तुम भी तो कहते हो न -
”वक्त से पहले, वक्त से ज्यादा
किसी को कुछ नहीं मिलता।“

अभी भी, सभी 10 बरस तक बच्चे नहीं रहते
अभी भी, सभी 25 साल की उम्र में जवान नहीं हो जाते
अभी भी सभी 80 साल की उम्र में बूढ़े नहीं होते।

तो समय का तुम्हारी जिन्दगी से
इतना बड़ा रिश्ता नहीं है
जितना तुमने खड़ा कर लिया है।

किसी वक्त नाम की शै की
जरूरत भी क्या है?
...
पर अपने ही दुख से
तुमने ही गिनना शुरू कर दिये थे
पल
पहर
सुबह शाम
दिन - रात
सप्ताह - महीने

तुमने ही बनाया
365 दिनों का एक साल
और तुम्हारे ही हिसाब से
365 दिन रात बीत गये हैं
और तुम ही खुश हो रहे हो
या,
बस आस पास के लोग
मना रहे हैं नये साल के नाम पर कुछ
और इसलिए
तुम भी
...
क्या दुख से ही,
क्या वक्त से ही
तुमने सीखा था
झूठ बोलना
क्योंकि वक्त और झूठ
हमेशा बदलते रहते हैं।
...

और.....
वक्त को जानने के बाद ही
तुमने ‘सब कुछ खुद ब खुद होने को’
‘मैंने किया’ में बदल लिया था
(मैंने किया था, मैं कर रहा हूं, मैं करूंगा)
...
हर पिछले साल के नये दिन भी
तुमने खुदसे कई वादे और संकल्प किये थे
जिसे फिर तुमने कभी भी याद नहीं किया
किसी भी साल के 364 दिनों में
...
तुम्हारी मजबूरी है कि
इतिहास को याद रखना पड़ता है
क्योंकि
तुम कुछ भी नहीं हो
कुल जमा जोड़ भी
अभी तक
...
नये साल के आने पर
तुम क्यों खुश हो
एक साल और कम हो गया है जिन्दगी का
...
पर कुछ भी हो
मैं नहीं चाहता
तुम नाराज हो जाओ - इन सब बातों से,
किसी भी बात से,
इसलिए नया साल मुबारक

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