शीषर्क न दो

शीषर्क न दो
रहने दो वर्तमान को वर्तमान
न ढूंढो अतीत, भविष्य में कुछ समान
पियो पल-पल
किलकारियां मारती बहती नदी का जल
न बांधो अकाल को, न तोड़ो
बहती नदी के कूल न मोड़ो
छोड़ो राहों को उनकी राह पर
न पापरत होओ कुछ चाह कर
जियो अनिश्चितता को अज्ञात को
कौंधते सूरज स्याह रात को
न ढूंढो हल
है सच्चा ज्ञान
जो है, उसका वैसा का वैसा भान
पियो हर पल
अमृत मिले की गरल
अकाल में तैरते रहना
कुदरतन है सहज सरल