यदि आपको होश में रहना मुश्किल लगे तो एक प्रयोग करें, दिन भर में अपने मन में आये विचारों और अहसासांे को नोट करें, अपनी प्रतिक्रियाओं जलन, ईष्र्या, दिखावे, विषयासक्ति, आप जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं, अपने शब्दों के पीछे जो आशय था और ऐसी ही बातों को नोट करें।
नाश्ते के पहले कुछ समय और रात को सोने से पहले तक की बातें अत्यावश्क रूप से ये सारी बातें नोट करें। ये सब बातें जब तब समय मिले नोट करते चलें और रात को सोने से पहले दिन भर में लिखे हुए को देखें, अध्ययन करें और परीक्षण करें, बिना किसी पूर्व निर्णय, बिना किसी आलोचना या प्रशंसा के, इससे आप अपने छिपे हुए विचारों, अहसासों, ईच्छाओं और अपने शब्दों के अर्थों को खोज पाएंगे।
अब इस अध्ययन में सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि जो भी आपने लिखा है अपनी स्वयं की बुद्धिमत्ता समझ से अपनी अवधान अवस्था को देख पायेंगे। इस आत्म अवधान आत्म ज्ञान की लौ में आप अपने द्वंद्वों के कारणों को खोज पाएंगे कारण मिलते ही द्वंद्व विलीन भी हो जाते हैं। आप अपने विचारों अपने अनुमान से एक दो बार नहीं कई दिनों तक विचारों, अहसासों, अपने आशयों प्रतिक्रियाओं को लिखने का सिलसिला जारी रख सकते हैं तब तक जब तक कि आप इनके पैदा होते ही तुरत ही इन्हें देखने की अवधानपूर्ण अवस्था में न आ जाएं।
ध्यान ऐसी ही सतत अवधानपूर्ण अवस्था है आत्मबोध की और आत्म से निरपेक्ष बोध की। ध्यान, सुविचारों से परे की अवस्था है, जहां अक्षोभ प्रशांत विवेक का उदय होता है और इसमें ही सर्वोच्च की धीरता का यथार्थ सामने आता है।
आत्म अवधान की लौ
Posted by
Rajeysha
on Friday 26 December 2008
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