बारिश का इंतजार है

गर्मी बहुत है
बारिश का इंतजार है
रोज शाम बादल गुजरते हैं सिर से
और मैं मुड़ मुड़ के देखता हूं
फिर........फिर से
क्या पता कहां पर
बूंदों का त्यौहार है

सुबह से शाम तक
चमकती घाम से
गहरी काली रात तक
किसी बूंद की आहट नजर नहीं आती
जलाये रखी है अभी तक
उम्मीदों की बाती
क्या पता कहां पर
मेघों का व्यापार है

गर्मी बहुत है
पंखे-कूलर फेल हैं
सांसों के लिए
शरीर जेल है
जिंदगी की गेल में
क्या पता कहां पर
बादल बिजलियाँ बहार है
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अभी तक गर्मी है

ठीक था
फसलों के पकने तक!
पर.....
बहुत दिनों से
गर्मी के बीत जाने की उम्मीदों के बाद भी
अभी तक गर्मी है

अभी तक सिर, गर्दन और छाती
पसीने से तरबतर है
शहर में कहीं भी पानी नहीं दिखता
सिवा मेरे शरीर के
सारे जोड़ों की चिपचिपाहट के

बेहद गर्मी है
अब तो इंतजार रहने लगा है
सुबह से शाम तक
कि कब ये मौसम गुजर जाये

गुजर जाये
सूरज का अस्खलित नारी सा घूरना
अलसुबह से
गहरी काली रात तक

गुजर जाये
मेरे जिस्म का सारा
पानी चूसने के बाद भी अतृप्त
प्यासी नजरों का ताप

गुजर जाये
बादलों का घिरना और उमस बन जाना
हवाओं का लू बनना
और सारी धरती को
पिघला देने की हवस बन जाना

गुजर जायें
कुआंे का सूखापन
पोखरों झीलों नदियों की दरारें
दिमाग को चकराते से
उष्ण लहरों के तीक्ष्ण किनारे

कि बहुत से लोग गुजर गये हैं
भला है गुजर जाये ये मौसम भी