बरस जा बादल

बरस जा बादल
सूरज की आग भरी अंगड़ाई
दुपहरी के तपते तवे को
डूबो दे मिट्टी की खुशबू में
रच जा रूह के नथनों में
कर दे पागल

बरस जा बादल
अब नहीं नहायेगी
सूखे पोखर की दरारों में
कोई अविछिन्नयौवना
न चलायेगी हल
यूं ही यूं ही तरस न बादल

बीज हैं जिंदा
धरती की कब्रों में
बन जल कर दे हल
लहरा जाने दे नभ तक
कोमल कोंपलों का बल

कुओं की गहराई
नदियों के कछार
तालों सागरों का विस्तार
मानव मन भी हार
हुआ है आकुल
बरस जा बादल

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