Wednesday, 4 February 2009

मिलारेपा का एक गीत

अपने गुरू मारपा के चरणों को नमन करता हूं
और आपके प्रत्युत्तर में एक गीत गाता हूँ।
ध्यानपूर्वक सुनिये मैं जो कहता हँू।

देखने का सर्वोत्तम ढंग है ”अदेखे रहना“
स्वयं मन का, मन की प्रभा को।
सर्वोत्तम है वह ईनाम - जिसकी राह न तकी गई होे,
मन का अपना अनमोल खजाना।

सर्वोत्तम पौष्टिक आहार है - निराहार
जो अतुल्य भोज है समाधि का।
सर्वोपरि तृप्तियुक्त पेय है - अतृप्तता
हार्दिक सहानुभूति का अमृत

ओह! यह आत्मबोध अवधान
शब्द और विवरणातीत है
मन बच्चों की दुनिया नहीं
न ही तार्किकों की

उपलब्धि, लब्धातीत के सत्य की
जहां पहुंच है सर्वोच्च में
देखी ऊंचे और निचले की निःसारता
जब हो घुलनशीलता तक पहुंच

अनआंदोलन के
सर्वोच्च मार्ग का अनुसरण
जन्म और मरण के अंत को जानना
और सर्वोच्च आशय का पूरा होना

कारण के खोखलेपन को देखना है,
परम तर्क की सम्पन्नपूर्णता।
जब आप जानते हैं -
विशाल और छोटे के निराधारता।
तब आप प्रवेश करते हैं परम द्वार में।

अच्छे और बुरे के पार की समझ
परम कुशलता का मार्ग प्रशस्त करती है
द्वैत से विच्छेद का अनुभव
सर्वोच्च दृष्टि को गले लगाना है।

जब आप जानते हैं निःष्प्रयास का सच
आप योग्य हो जाते हैं सर्वोच्च फलन के
अज्ञानी हैं जो इस सच से मरहूम हैं
स्वार्थी गुरू सीखने से फूल कर कुप्पा हैं
शिष्य शब्दजाल में उलझे हैं
योगी पूर्वाधारणाओं से शोषित हैं
मोक्ष की वासना में बुरी तरह फंसे
जन्म जन्म की दासता ही पाते हैं

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