Friday, 14 November 2008

घर ही नहीं
रोज़ झाडू पोंछा लगाना चाहिए
अक्ल के तहखानों में

जरा मुश्किल है
क्यों कि हर दिन
हम बे खबर होते हैं
रात आती है aन्धेरा होता है
और
रोज़ बन जाते है
नए तहखाने

रोज़ ८ - १० घंटे घर के बाहर भी बिताना जरूरी है
कि हमें खबर रहे
अब हम पत्थर के जन्म को
पार कर आये हैं
और चल फिर सकतें हैं
चाँद तक

हर घडी याद रहना चाहिए
कि हम जिन्दा है
आदमी हैं
और होश रखते है

और खुदा आकाश में ही नहीं
हमारी जड़ों में भी है

5 comments:

  1. हर घडी याद रहना चाहिए
    कि हम जिन्दा है
    आदमी हैं
    और होश रखते है
    खूब लिखा है आपने. निरंतरता बनाये रखें. स्वागत अपनी विरासत को समर्पित मेरे ब्लॉग पर भी.

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  2. Very Nice. ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है. खूब लिखें, खूब पढ़ें, स्वच्छ समाज का रूप धरें, बुराई को मिटायें, अच्छाई जगत को सिखाएं...खूब लिखें-लिखायें...
    ---
    आप मेरे ब्लॉग पर सादर आमंत्रित हैं.
    ---
    अमित के. सागर
    (उल्टा तीर)

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  3. हर घडी याद रहना चाहिए
    कि हम जिन्दा है
    आदमी हैं
    और होश रखते है

    और खुदा आकाश में ही नहीं
    हमारी जड़ों में भी है

    very well said.
    Regards

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  4. Ajee kyaa baat hai apki rachnayon mein. Itnee gahree baat kitnee asaani sey kah jaatey hain aap.

    Shabbash. Likhtey rahiye

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